Story of Change

अंशिका पाण्डेय

.मेरा नाम अंशिका पांडे है और मैं पनागर, जबलपुर में रहती हूं। मैं बताना चाहती हूं कि पहले मैं अपनी बात लोगों के सामने ठीक से रख नहीं पाती थी। मुझे समाज की समस्याओं की गहरी समझ नहीं थी और आत्मविश्वास की भी कमी थी। जब मुझे अपने समाज की समस्याओं पर काम करने का अवसर मिला, तब मुझे महसूस हुआ कि हमारे समाज में एकता की कमी है और शिक्षा का अभाव भी है। बहुत से लोगों को शिक्षा का महत्व और अपने संवैधानिक अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं है, जिसके कारण उनका शोषण होता रहता है। मेरी जिंदगी में असली बदलाव तब आया जब मैं जबरदस्त जागरिक समूह से जुड़ी। इस समूह से जुड़ने के बाद मुझे संविधान और नागरिक अधिकारों के बारे में जानकारी मिली। मैंने जाना कि हमें संविधान द्वारा कई अधिकार मिले हैं, जिनका सही उपयोग करके हम अपनी जिंदगी और समाज को बेहतर बना सकते हैं। इसके साथ ही, समूह से जुड़ने के बाद मुझे अपनी शिक्षा और करियर को लेकर भी स्पष्ट समझ बनने लगी। पहले मुझे यह स्पष्ट नहीं था कि मुझे भविष्य में क्या करना है, लेकिन समूह की बैठकों, चर्चाओं और मार्गदर्शन से मुझे यह समझ आया कि अपने रुचि, क्षमता और लक्ष्य के आधार पर सही करियर का चुनाव कैसे किया जाता है। अब मुझे यह पता है कि पढ़ाई कितनी जरूरी है, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कैसे करनी है और अपने लक्ष्य की ओर कदम-दर-कदम कैसे बढ़ना है। समूह के माध्यम से जो कार्य (टास्क) हमें दिए जाते थे, उनके जरिए मैंने समुदाय की समस्याओं को पहचाना और उनके समाधान पर काम किया। इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और मैं लोगों के सामने अपनी बात खुलकर रखने लगी। मेरे जीवन में संविधान का अनुच्छेद 19 बहुत उपयोगी साबित हुआ, क्योंकि इसमें हमें बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलती है। अब मैं अपने आसपास के लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक कर पा रही हूं और एक जागरूक समाज बनाने का सपना देखती हूं।

महिमा चौधरी

मेरा नाम महिमा चौधरी है और मैं पनागर जबलपुर में रहती हूँ। मुझे यह जानकर जानकारी हुई कि शिक्षा हमारे साथ हमारे समुदाय के लिए भी कितनी महत्वपूर्ण है और समुदाय में इसकी जानकारी होना कितना जरूरी है। समुदाय एक छोटा शब्द लग सकता है, लेकिन इसमें कई छुपी हुई समस्याएं होती हैं जिन पर अक्सर चर्चा नहीं की जाती है। हमारे समुदाय को शिक्षा के महत्व के बारे में जानना बहुत जरूरी है। जब मुझे अपने समुदाय में शिक्षा के ऊपर जानकारी निकालने का मौका मिला तब मुझे बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे कि समुदाय में शिक्षा को लेकर जागरूकता नहीं है और अधिकतर लड़कियों को शिक्षा की महत्वपूर्णता नहीं पता है, जो कि उन्हें समझाने में चुनौती का सामना करना पड़ा। समुदाय सुनने में तो बहुत ही छोटा शब्द लगता है लेकिन अगर हम इसके बारे में जानना चाहे तो यह बहुत ही बड़ा रूप लेता है पहले मुझे अपने समुदाय के बारे में और मेरे समुदाय में क्या समस्याएँ हैं उसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी क्योंकि मुझे जो संसाधन मिल रहे थे मुझे उसकी महत्वपूर्णता की जानकारी थी तो पहले मैं इस बारे में नहीं सोचती थी जब मैंने जबरदस्त जागरूक समूह के साथ जुड़ी तो मुझे अपने समुदाय की समस्याओं के बारे में जानने मिला मुझे और मेरे समूह में बहुत से साथी थे जिनके साथ मिलकर मैंने अपने समुदाय और हमारे संविधान के बारे में जानकारी जानी जैसे कि हमें कौन कौन से अधिकार अनुच्छेद और हमें कौन कौन से मूल प्राप्त हैं हमारे कौन कौन से कर्तव्य होते हैं मुझे ये सारी जानकारियाँ जानने मिली और मैंने अपने समुदाय में शिक्षा की महत्वपूर्णता लोगों को समझाने का प्रयास किया मेरे लिए मेरा सबसे उपयोग में आने वाला अनुच्छेद 21 (क) शिक्षा का अधिकार रहा क्योंकि मैं किसी को समुदाय में जाकर शिक्षा के ऊपर जानकारी देती थी तो मैं उन्हें RTE Act जो कि 6-14 वर्ष के लिए अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त करवाता है इस अधिकार की जानकारी दी जिससे शिक्षा को लेकर मेरे समुदाय में ज्यादा जागरूकता बढ़ पाई और ऐसे ही मैंने अपने समुदाय की चुनौती निकालकर और इस समस्या का समाधान करने का प्रयास किया और मेरे अंदर अब तक जो बदलाव आए हैं मुझे पता नहीं था कि मैं इतनी सारी जानकारी कभी जान पाऊँगी क्योंकि ये जानकारी मुझे घर और स्कूल कहीं नहीं दी जाती थी जो कि मैं जबरदस्त जागरूक के समूह के बाद जुड़ने के बाद जानकारी पाई हूँ।

दिशा सैनी

मेरा नाम दिशा सैनी है और मैं जबलपुर से हूँ। आज मैं आप सबके साथ अपने जीवन में आए बदलाव को साझा करना चाहती हूँ। पहले मैं बहुत संकोची थी। मुझे हमेशा डर लगता था कि अगर मैंने सबके सामने कुछ कहा, तो लोग मेरा मज़ाक उड़ाएँगे। इसी डर की वजह से मैं कभी किसी कार्यक्रम में भाग नहीं लेती थी और न ही अपनी राय रख पाती थी। चाहकर भी मैं चुप ही रहती थी। लेकिन जब से मैं जागरूकता कार्यक्रम से जुड़ी हूँ, तब से मेरे जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आया है। पहली बार जब दीदी लोग हमें लेकर जागरूकता की मीटिंग में गईं, तब मैंने सच में यह समझा कि हमें जागरूक होना कितना ज़रूरी है। मीटिंग के दौरान हमें आसपास की समस्याओं पर चर्चा करने का मौका मिला। वहाँ मैंने पहली बार गहराई से महसूस किया कि समाज में भेदभाव और रूढ़िवादिता कितनी गहरी जड़ें जमाए हुए हैं। कुछ टास्क ऐसे थे, जिन्होंने मुझे सोचने पर मजबूर किया और मुझे अपने भीतर की ताकत और कमजोरियों को पहचानने का अवसर मिला। उन गतिविधियों से मैंने समझा कि अगर हमें समाज में बदलाव लाना है, तो सबसे पहले खुद को समझना और बदलना ज़रूरी है। इन्हीं सत्रों में हमें अपने अधिकार और कर्तव्यों के बारे में भी जानकारी मिली। मैंने जाना कि हमारे संविधान का अनुच्छेद 19 हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। इसके साथ ही अनुच्छेद 14 हमें समानता का अधिकार, और अनुच्छेद 21 हमें जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। इन अधिकारों ने मुझे अपने अस्तित्व को समझने की शक्ति दी। लेकिन इसके साथ ही मैंने यह भी सीखा कि हर अधिकार के साथ एक कर्तव्य भी जुड़ा हुआ है – जैसे पर्यावरण की रक्षा करना, दूसरों का सम्मान करना और समाज में शांति बनाए रखना। आज मैं महसूस करती हूँ कि पहले मैं इन बातों को हल्के में लेती थी, लेकिन अब मुझे समझ आता है कि जागरूकता ही बदलाव की पहली सीढ़ी है। अब मैं न सिर्फ अपने अधिकारों के प्रति सजग हूँ, बल्कि अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए भी हमेशा तैयार रहती हूँ। यही सोच मुझे आत्मविश्वासी और जिम्मेदार नागरिक बनाती है।

स्नेहा यादव

मेरा नाम स्नेहा यादव है। पहले मेरा जीवन सिर्फ मेरे घर और स्कूल तक सीमित था। मैं समाज की समस्याओं को दूर से देखती थी, लेकिन कभी यह नहीं सोचा था कि मैं भी कुछ बदल सकती हूँ। एक दिन में इस जागरूक कार्यक्रम से जुड़ी। शुरू में मुझे डर लग रहा था कि मैं यह काम कर पाऊँगी या नहीं, क्योंकि मुझे लोगों से बात करने का ज़्यादा आत्मविश्वास नहीं था। लेकिन दीदी लोगों ने मुझे हौसला दिया और धीरे-धीरे मुझे इस कार्यक्रम का सही मतलब समझ आने लगा। मैंने देखा कि कई बच्चे पढ़ाई से दूर हैं, कई महिलाएँ अपने अधिकारों से अनजान हैं और कई जगह साफ-सफाई का अभाव है। पहले मैं सिर्फ अपने बारे में सोचती थी, अब समाज के लिए सोचना सीख गई हूँ। मेरा आत्मविश्वास बढ़ा, लोगों से बात करने की हिम्मत आई और मुझे यह एहसास हुआ कि छोटा कदम भी बड़ी पहचान बना सकता है। आज मैं खुद को पहले से ज्यादा मजबूत, जिम्मेदार और जागरूक इंसान मानती हूँ। अब मुझे लगता है – “असली बदलाव तब आता है, जब हम समाज के लिए जीना शुरू करते हैं।” मैने कई संवैधानिक मूल्यों के बारे मैं जाना । .

कुशल चौधरी

मेरा नाम कुशल है, मेरी उम्र पंद्रह साल है। सच कहूँ तो कुछ समय पहले तक मैं लड़कियों की जिंदगी को बहुत आसान समझता था। मुझे लगता था कि उन्हें बस पढ़ना, खेलना और आराम करना है। घर का काम तो मामूली बात है, इसमें मेहनत या सम्मान की कोई ज़रूरत नहीं। शायद यही वजह थी कि मैं अपनी माँ और दीदी की मेहनत को कभी सही मायनों में समझ ही नहीं पाया। पर फिर मेरी मुलाकात एक संस्था से हुई। वहाँ मुझे “जबरजस्त जगरिक प्रोग्राम” के बारे में पता चला। शुरुआत में तो मैंने इसे बस समय बिताने का एक ज़रिया समझा, लेकिन धीरे-धीरे मैंने संविधान, समानता और सम्मान की बातें सुनना शुरू किया। वहाँ बार-बार यही समझाया जाता था कि *हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी लिंग का हो, उसका जीवन बराबर की गरिमा और सम्मान का हकदार है।* संस्था ने मुझे एक खास टास्क दिया—एक दिन के लिए किसी अन्य लिंग की भूमिका निभाना। मुझे यह चुनौती थोड़ी अजीब लगी, पर मैंने हाँ कर दी। उस दिन मुझे अपनी माँ और दीदी की जिम्मेदारियाँ निभानी थीं। सुबह-सुबह उठकर सबसे पहले रसोई में गया। चूल्हा-चौका संभालना, सबके लिए नाश्ता तैयार करना, बर्तन साफ़ करना, फिर कपड़े धोना—मैंने सोचा था यह सब आसान होगा, लेकिन थोड़ी ही देर में पसीने-पसीने हो गया। जब मैंने दीदी के काम और घर के बीच की जिम्मेदारियाँ निभाने की कोशिश की, तो समझ आया कि ऑफिस के साथ-साथ घर का काम कितना भारी पड़ता है। माँ का दिन तो इससे भी कठिन होता है—घर की हर छोटी-बड़ी जिम्मेदारी उनके कंधों पर है। शाम तक मेरा शरीर थक चुका था, लेकिन असली बदलाव तो मेरे मन में हुआ। मुझे पहली बार महसूस हुआ कि जिन कामों को मैं “आसान” समझता था, वे कितनी मेहनत, धैर्य और ताकत माँगते हैं। उस दिन के बाद मेरी सोच हमेशा के लिए बदल गई। अब मैं लड़कियों की ज़िंदगी को हल्का नहीं समझता। मैंने सीखा कि *सम्मान शब्दों से नहीं, कर्मों से दिखाया जाता है।* मैंने माँ और दीदी के कामों में हाथ बंटाना शुरू किया और अपने दोस्तों को भी यही समझाने लगा कि औरतें भी वही इज़्ज़त और सहूलियत की हकदार हैं जो हम अपने लिए चाहते हैं। आज मैं गर्व से कह सकता हूँ कि संस्था ने न सिर्फ मुझे बदला, बल्कि मेरे अंदर इंसानियत और समानता का बीज बो दिया। अब मैं मानता हूँ कि *लड़का और लड़की बराबर हैं, और दोनों का जीवन सम्मान और गरिमा से जीने लायक है।

संध्या चौधरी

मेरा नाम संध्या है। उम्र 22 साल। कभी मैं बहुत ही शर्मीली लड़की थी। चार लोगों के सामने बोलना तो दूर, मैं कोशिश भी नहीं करती थी। समाज में अपनी बात रखना मुझे मुश्किल लगता था। हमेशा लगता कि अगर मैंने कुछ कहा तो लोग क्या सोचेंगे। आत्मविश्वास की इतनी कमी थी कि मैंने कभी नेतृत्व करना जरूरी ही नहीं समझा। लेकिन फिर मेरी जिंदगी में एक मोड़ आया। मेरी मुलाकात हुई नागरिक अधिकार मंच से, जहाँ मैं अपने पड़ोस में रहने वाले दोस्त ईशा और अभय की मदद से गई, वहाँ एक अनोखा कार्यक्रम चल रहा था – जबरजस्त जागरीक प्रोग्राम। मैंने हिम्मत जुटाकर इसमें भाग लिया। पहले ही दिन जब मंच पर जाकर मुझे अपना परिचय देना पड़ा, तो मैं काँप रही थी। लेकिन मैंने किसी तरह बोल लिया। वही पल मेरे लिए पहला कदम था। उसके बाद मुझे हर हफ़्ते टास्क मिलने लगे। कभी 5 लोगों का समूह बनाकर संविधान पर चर्चा करनी होती, तो कभी बुनियादी स्वास्थ्य पर एक सेशन का नेतृत्व करना पड़ता। शुरुआत में मुश्किल लगा, लेकिन जब भी मैं अपना टास्क पूरा करके जमघट में प्रस्तुत करती, तो मुझे खुद पर गर्व होता। धीरे-धीरे मेरा डर टूटने लगा। जहाँ पहले मैं छुप जाती थी, वहीं अब मैं आत्मविश्वास से खड़ी होकर बोलने लगी। मेरा संचार कौशल बेहतर हुआ और हर बार मुझे अच्छे अंक भी मिले। आज मैं बिना शर्म और डर के समाज के बीच अपनी बात रख पाती हूँ। मुझे यह भी समझ आया कि सिर्फ बोलना ही नहीं, बल्कि सही तरीके से बोलना और दूसरों को समझाना भी एक कला है। इसमें मेरा सबसे बड़ा सहारा बना संविधान का अनुच्छेद 19, जो मुझे यह हक देता है कि मैं अपनी बात स्वतंत्रता से रख सकूँ। अब मुझे यह महसूस होता है कि हर इंसान के भीतर क्षमता छिपी होती है, बस उसे सामने लाने के लिए सही माहौल और थोड़ी हिम्मत चाहिए। मुझे गर्व है कि मैंने अपनी झिझक को तोड़ा और निडर होकर बोलने का साहस पाया। आज की संध्या, पहले वाली संध्या से बिल्कुल अलग है। अब मैं सिर्फ सुनने वाली नहीं, बल्कि अपनी बात रखने और दूसरों को समझाने वाली संध्या बन चुकी हूँ।

हिमांशी श्रीपाल

मेरा नाम हिमांशी श्रीपाल है और मैं पनागर जबलपुर में रहती हूं मुझे पहले यह बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी कि हमारे समाज में किस प्रकार की चुनौतियां एवं किस प्रकार की परिस्थितियों भी होगी और यह जानना कितना जरूरी है समाज समाज शब्द सुनकर हमें ऐसा महसूस होता है कि यह एक झूठ एवं एक साथ मिलकर मिलकर बनाया गया समुदाय है परंतु जब यह है गहराई से हम जानना कि यह हमारे सामाजिक समुदाय में जब हमने यह जानकारी जाना तो पता चला कि हमारे समाज में ही कई प्रकार की विभिन्नता एवं कई मुश्किल है समस्याएं भी है और अक्सर हमने इन्हें जानने की उत्सुकता एवं में जानने की दिलचस्पी नहीं दिखाई समस्याएं में कभी जोर नहीं डाला हमें अपने समुदाय की समस्या एवं परिस्थितियों को जानना कितना जरूरी है जब मुझे अपने समुदाय को जानने का मौका मिला जानकारी निकालने का मौका मिला मुझे बहुत सी चुनौतियां का सामना करना पड़ा जैसे जैसे कि हमारे कर्तव्य हमारे मौलिक अधिकार इन सब के बारे में इन सब के बारे में उन्हें समझाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा | मैंने कभी अपने स्कूल एवं घर में भी कभी अपने समुदाय की समस्याओं के बारे में यह अपने मौलिक अधिकार एवं अपने मौलिक कर्तव्य के बारे में इतना विस्तार से नहीं जाना कि यह हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है हमारे समाज समुदाय की यह परिस्थितियों में क्या भूमिका है रखती है एवं मैंने इन्हें जाने की भी कभी सोचा नहीं था कि मुझे इन सब का ज्ञान भी प्राप्त होगा मुझे अपने साधारण जीवन मिल रहा था वही पर्याप्त लग रहा था परंतु जब मैं जबरदस्त जागरूक समूह के साथ जुड़ी तो मुझे अपने समुदाय के एवं अपने समाज की परिस्थितियों एवं चुनौतियां के बारे में जानकारी मिली यह हमारे मौलिक कर्तव्य एवं मौलिक अधिकार को विस्तार से जाना है हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है जैसे कि यहां मैं कौन-कौन से अधिकार एवं मौलिक कर्तव्य प्राप्त है अनुच्छेद और हमें कौन से मल प्राप्त हैं मुझे यह जानकारी जानने मिला एवं मुझे बहुत ही अच्छा नया अनुभव मिला है जैसे कि अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार यह हमारे मौलिक अधिकार में भी आता है अनुच्छेद 19 स्वतंत्रता का अधिकार यह हमारे मौलिक अधिकार में भी शामिल है अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार यह हमारे समुदाय के लिए भी जानकारी बहुत ही महत्वपूर्ण है परंतु है हमारे स्वयं के जीवन में यह जाने एवं उतारने के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है यह जानकारी सभी समुदाय वार्षिक एवं सभी लोग को पता होना चाहिए हमने यह कर्तव्य और अपने मौलिक अधिकार के बारे में जानकारी दी ज्यादा जागरूकता बढ़ पाई और ऐसे ही मैंने अपने समुदाय की चुनौतियां निकाल कर और इस समस्या का समाधान करने का प्रयास किया और मेरे अंदर आवे है बदलाव आया है कि मैं अपने समुदाय जागृत कर सकती हूं और उन्हें अपने जीवन के मौलिक कर्तव्य एवं मौलिक अधिकार के बारे में वज्जाक होकर वह आवाज उठा सकते हैं कि अगर उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव किसी भी प्रकार की परिस्थितियों आते हैं तो होता है तो वह अपनी क्या भूमिका है निभाएं

साहिल कोल

मेरा नाम साहिल कोल है मैं बागड़ा दफाई पोलीपाथर ग्वारीघाट जबलपुर में रहता हूं आज मैं मानता हूं कि हमारे जीवन मैं संविधान बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है आज यह बात इसलिए कह पा रहा हूं क्योंकि मुझे पहले मीटिंग में बैठना पसंद नहीं था। मेरे यहां सभी बच्चों की मीटिंग लगाई जाती थी जिसमें सभी बच्चों को बुलाया जाता था उसे मीटिंग में मुझे भी बुलाए थे लेकिन मैं नहीं गया मुझे अच्छा नहीं लगता था उसे मीटिंग में बैठने में तो मैं मुझे जब जब दीदी लोग बुलाते थे तो मैं भाग जाता था जिसमें बस मीटिंग में सभी को बुलाया जाता था पहले जब दीदी लोग मुझे भी बुलाओ तो मैं गया और मीटिंग में बेटा और समझा संविधान के बारे में दीदी लोगों ने बताया कि हमारे मूल अधिकार क्या है उसे मीटिंग में गया तो वहां बहुत सारी लड़‌कियां थी जहां की मेरे साथ का कोई लड़का नहीं था तो मुझे लड़कियों के बीच में बैठने में शर्म आते थे यह मेरे चुनौती थी जब फिर मैं इस मीटिंग में बैठने लगा तो फिर अच्छा लगा और सभी लड़कियों से भी दोस्ती हुई या फिर मुझे शर्म नहीं आती थी और अच्छा लगा था जब मैं मीटिंग में बैठने लगा तो मुझे संविधान से जुड़ी बातें सीखने को मिली और संविधान में यह भी सिखाया गया कि अपनी बातों को सभी के सामने रखना हमारा अधिकार है हमारे जीवन में मौलिक अधिकारों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है और हमें मीटिंग में कुछ ऐसे गेम खिलाए गए जो हमारे अधिकार से जुड़े हैं उससे यह सीख मिली कि हमें किसी से कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए और किसी को अच्छा बुरा नहीं बोलना चाहिए सभी को समान मानना चाहिए और जैसे की कोई ऊंची जात का है या कोई नीचे जात का उसमें भी भेदभाव नहीं रखना चाहिए सभी के बीच दोस्ती रखना चाहिए हमें गेम के द्वारा जो सिखाया गया उससे हमारी दोस्ती भी हुई जिससे हमारी जोड़ी बनी और दोस्ती हुई जिससे हम सभी लोगों से बात करना जानने लगे और सभी के विचारों को जाने और सभी के बारे में जाना समझा सभी को समान अधिकार है तो सभी को बराबर सम्मान मिलना चाहिए और सभी को समान मानना चाहिए कोई भेदभाव नहीं रहना चाहिए

नंदिता कोल

मेरा नाम नंदिता कोल बागड़ा दफाई पोलीपाथर ग्वारीघाट जबलपुर में रहती हूं मैं अपने अंदर आए हुए बदलाव के बारे में बताना चाहती हूं जब मैं पहले मीटिंग में बैठी थी तो मुझे अच्छा नहीं लगता था और कुछ समझ में भी नहीं आता था मुझे लगता था कि यह किस चीज की मीटिंग लगती है और फिर जब दीदी लोग मुझे भी बुलाई इस मीटिंग में और बैठा ले मीटिंग में तो धीरे-धीरे फिर समझ में आने लगा और पहले तो मैं घर से भी बाहर नहीं निकलते थे मुझे घर वाले भी नहीं जान देते थे कहीं लेकिन फिर यह मीटिंग जब से लगने लगी तो मुझे दीदी लोग बुलाते थे तो मैं बोल कर जाती थी कि मैं मीटिंग में जा रही हूं अब मुझे घर वाले भी जाने देते हैं और मैं इस बैठक में बैठने लगी हूं और मेरी कुछ ऐसी चुनौतियां भी थी कि जैसे मैं पहले बाहर बिल्कुल भी नहीं निकलती थी मुझे निकलने भी नहीं देते थे लेकिन जब से मैं मीटिंग में बैठी तो मेरे दोस्त भी बने और मुझे अच्छा लगने लगा सभी से दोस्ती करके लेकिन पहले में नहीं निकलती थी तो मैं किसी को जानती भी नहीं थी जब मैं बाहर निकले तो मुझे पता चला कि बाहर निकलना भी कितना जरूरी है की सभी को जाने माने और सभी के विचारों को समझें और अपनी भी पहचान बने और हम औरों को भी जाने और समझे जब फिर मैं इस मीटिंग में बैठने लगी तो मुझे दीदी लोग ने बताएं कि हमारे मौलिक अधिकार क्या है और हमारे जीवन में क्या भूमिका निभाते हैं फिर धीरे-धीरे में समझने लगे और मुझे समझ में आने लगा जिससे कि मुझे बताया गया कि हमारे क्या अधिकार है और क्या कर्तव्य है जैसे किसी की मदद करना यह हमारा कर्तव्य है और अधिकार जैसे कि हम पहले बाहर निकलते नहीं थे और किसी से बोलते नहीं थे तो यह हमारा अधिकार है हमें सभी के साथ मिलकर रहना है और सभी से बातें करना है हमारे मौलिक अधिकार में यह भी दिया गया है कि हमें डरना नहीं और सभी के सामने अपनी बातें रखना जरूरी है यह हमारा अधिकार है बोलने का अधिकार स्वतंत्रता का अधिकार शिक्षा का अधिकार यह हमारे मूल अधिकार है जिससे हमें जीने का जीवन देता है और कोई भेदभाव नहीं करना है हम यह गेम में जब हर हफ्ते टास्क किया तो हमारा सेकंड डिवीजन भी लगा जिससे कि हमें बहुत अच्छा लगा यह गेम जीत कर .

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