Kaushal Kabir
बोल के लव आजा़द है तेरे ……..

मैं कौशल कबीर (चौधरी) और मैं नागरिक अधिकार मंच संस्था जून 2023 सें फील्ड कार्यक्रर्ता हूं। मेरा फील्ड कार्य 5 बस्तियों में है, जिसमें मै पाच महिला समूह और पाच यूथ समूह के साथ कार्य कर रही हूं। मै ज्यादा तो पढी लिखी नही हूं पर मुझे सीखना बहुत अच्छा लगता है। एक दिन शिव नें कहा बच्चें अब बडें हो रहें है घर में अखिर क्या करती हो तुम्हारे पास दोपहर का समय रहता है तो ऑफिस में आकर कुछ सीखा करो, घर से बाहर निकलों लोगो से मिलों उनको सुनो और समझों। मै शादी के बाद सें ज्यादा घर से बाहर कभी नही निकली तो मुझें लोगो से बात करना अटपटा सा लगता था। बेटी रिया कहती हैं की मम्मी सीखने की कोई उम्र नही होती, लोगो को उम्र के अखिरी पडाव तक सीखना चाहिए। जो सीखतें है वही सही मंजिल और सही राह पर रहते है, फिर मैंने तय किया कि मै नागरिक अधिकार मंच के ऑफिस जाउंगी।
मै जब नागरिक अधिकार मंच के ऑफिस में पहली बार आई तो ऐसी कोई चाह नही थी की मै फील्ड कार्यक्रर्ता बनूं। शुरू में मै ऑफिस की साफ सफाई झाडू पोछा और चाय बनाया करती थी और खाली और समय मे फाईलों को देखती और पढती समझनें का प्रयास करती थी कि ऑफिस का काम क्या है़? कैसे करते है? और कैसे लिखते है? उनको समझनें का प्रयास करती थी, एक दिन शिव नें मुझे मजदूरी कार्ड का फॉर्म भरने के लिए दियें और बताया की फॉर्म कैसे भरना है , पर मुझे समझ में नही आया। ऑफिस में दीक्षा नें मेरी मदद की उसने बताया की फॉर्म कैसे भरते है , धीरे -धीरे मुझसे मजदूरी कार्ड का फॉर्म भरतें आने लगा।
मै ऑफिस के फील्ड कार्यकर्ताओं के साथ बस्ती विजिट और समूह कें बैठक में जाने लगी, पहली बार बस्ती में जाना लोगो से मिलना बहुत अच्छा लगा, मेरे अंदर का डर और झिझक दूर हुई। किन्ही कारणवश अंकुरण कार्यकर्ता रोशनी प्रजापति नें बीच में ही जॉब छोड दिया। ऑफिस स्टाफ मीटिंग में अजय भैया (अजय सिंगोर) नें रोशनी की जगह मुझे फील्ड कार्य करने के लिए कहा , पर मुझे लगा क्या मै फील्ड कार्य कर पाउंगी? फिर मैने सोचा करके देखतें है अच्छा होगा तो ठीक नही तों फिर छोड देगे। 6 जून 2023 से मै पांच बस्तियों में फील्ड कार्य करने लगी।
मेरे काम में बहुत सी चुनौतियां आई क्योकि जिस बस्ती में मै रहती हूँ उसी बस्ती में मेरा काम करना बहुत चुनौती भरा रहा। जब मै बस्ती में लोगो से सम्पर्क करने जाती थी तो लोगो का अच्छा रिपोन्स नही मिलता था, कहतें थे की ये यही तो रहती , कोई कहता इनका तो काम ही है घुमना, कोई कहता हमारे कारण ही तो ये पैसा कमाते है, कोई कहता की हमारे बच्चें बैठक में नही आयेंगे और कोई कहता की हम अपने बच्चों को किसी दुसरे के घर में नही जाने देगें , पर इन लोगो में सें कुछ ऐसे भी लोग थें जो मुझसें बहुत अच्छे से बात करते थें, भरोसा करतें थे जिसके कारण हमने दों स्व सहायता समूहों का गठन किया।
यूथ के साथ संवाद करने में मुझे थोडा वक्त लगा, समझ नही आ रहा था की क्या बात करू? फिर मैनें उनसे दोस्ती कि तो बात करना असान लगा। क्योकि मेरी बेटी रिया और बेटा तो समूह थे तो युवाओं सें दोस्ती करने में ज्यादा समय नही लगा। जिस तरह महिलाओं सें मेरी दोस्ती हुई उसी तरह यूथ सें भी मेरी अच्छी दोस्ती हुई ,जिसके चलतें बस्ती में दो वालंटियर तैयार हुयें जों बस्ती में ज्यादा से ज्यादा युवाओं कें साथ संविधान और संवैधानिक मूल्यों पर और लोगो को जागरूक करने का कार्य कर रहे है। बस्ती की महिलाओं नें अपनी अर्थिक सहायता के लिए स्वय का बचत खाता खुलवाया। साथ ही अपने मूलभूत सुविधाओं रोड ,नाली ,पानी ,बिजली और बच्चो की शिक्षा के लिए पार्षद, विधायक के पास मांग पत्र देती है। बस्ती में महिलाओ और यूथ के साथ जुडने के बाद मुझे एक सबक मिला जब तक हम लोगो के अच्छे मित्र या हमर्दद नही बनेगे तो वो क्यूं हमें अपना मानेंगे।
बैठक में चर्चा के दौरान कुछ महिला साथियों के विचारों में बदलाव आया उनके मन सें भेदभाव जैसी भावनायें कम हुई अब वो एक दूसरे के घर में चाय पानी पी लेती है और मीटिंग के लिए किसी एक के आंगन में बैठनें में उनको कोई परेशानी नही होती है। नागरिक अधिकार मंच मेरे लिए एक पाठशाला है जहा मैने बहुत कुछ सीखा मेरे घर में लैपटॉप था पर मैने कभी उसे छुआ नही पर संस्था में आनें के बाद मैने रिपोर्ट बनाना, स्टोरी लिखना, मिनिट लिखना, लोगो से बात करना, संस्था में आनें सें मन का डर खत्म हुआ ,ये सभी कुछ मैने संस्था से सीखा । मुझे नही पता की आगे मै संस्था में हु या नही पर मुझें खुशी है की मै संस्था का हिस्सा बन पाई बहुत सारी यादें है जो हमेशा मेरे साथ रहेंगी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
श्रीमति कौशल कबीर